नींबू की उन्नत खेती (Improved cultivation of lime)

 नींबू प्रजाति के फल

भारत में आम तथा केले के पश्चात् नींबू प्रजाति के फलों का तीसरा स्थान है इसमें सर्दी तथा गर्मी सहन करने की क्षमता होने के कारण नींबू प्रजाति का कोई न कोई फल लगभग सभी प्रान्तों में उगाया जाता है। जैसे सन्तरा की खेती के लिये नागपुर विख्यात हैं जबकि मौसम्बी महाराष्ट्र में, सतगुड्डी आंध्रप्रदेश में, ब्लड रेड माल्टा, जाफा एवं वेलेन्सीया पंजाब एवं राजस्थान में तथा नींबू आंध्रप्रदेश, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु तथा अन्य राज्यों में व्यवसायिक स्तर पर उगाये जाते हैं। वैसे नींबू सम्पूर्ण भारत में उगाया जाता हैं नींबू प्रजाति के फलों की दो श्रेणियाँ है - खट्टी जातियाँ तथा मीठी जातियाँ। 

1 खट्टी जातियों में नींबू गलगल रंगपुर लेमन, कर्ना खट्टा इत्यादि फल आते है।

2 मीठी जातियों में संतरा, मौसम्बी, ग्रेपफ्रूट चकोतरा इत्यादि फल आते है।

इन फलों में विटामिन ए, बी, सी और खनिज पदार्थ प्रचूर मात्रा में पाये जाते हैं। नींबू प्रजाति के फल विटामिन श्सीश् के प्रमुख स्त्रोत है। नींबू प्रजाति के फलों से बनने वाला परिरक्षित पदार्थ श्मार्मलेडश् की विश्व में पर्याप्त मांग रहती हैं। इसके पुष्प पर्ण तथा छिलकों से प्राप्त तेल का भी व्यवसायिक महत्व हैं। इसकी मीठी जातियाँ जैसे सन्तरा, मौसम्बी, ग्रेपफ्रूट, आदि का उपयोग ताजे फलों के रूप में किया जाता हैं। जबकि खट्टी जातियाँ जैसे नीबू, गलगल, रंगपुर लेमन, करना खट्टा आदि का उपयोग पानक (स्क्वैश) कार्डियल, अचार तथा विभिन्न प्रकार की औषधियों में किया जाता हैं। नींबू वर्गीय फलों का राष्ट्रीय अनुसंधान केन्द्र नागपुर में स्थित है।

नींबू

वानस्पतिक नाम - सिट्रस ऑरेण्टीफोलिया

कुल - रूटेसी

उत्पत्ति स्थान - भारत

गुणसूत्रों की संख्या - 18

खाध्य योग्य भाग - हेस्पेरीडियम   

जलवायु (Climate)

नींबू की खेती उष्ण से शीतोष्ण जलवायु तक सफलतापूर्वक की जा सकती हैं। शुष्क एंव अर्धशुष्क क्षेत्र जहाँ पानी की सुविधा हो, इसकी खेती के लिए उत्तम रहते हैं। इसकी सफल बागवानी के लिये उपयुक्त तापक्रम 16 से 32° से. हैं। राजस्थान के उन भागों में जहाँ पाला कम पड़ता हैं तथा वातावरण नम व जाड़े की ऋतु लम्बी होती है, वहाँ इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती हैं।

भूमि (Soil)

नींबू की खेती सभी प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है किन्तु उपजाऊ दोमट भूमि सर्वोतम मानी गयी है। भूमि जीवांश युक्त व 2 मीटर गहरी होनी चाहिए। अधिक रेतीली व चिकनी मिट्टी इसके लिए उपयुक्त नही रहती हैं। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।

उन्नत किस्में (Improved varieties) 

भारत मे उगाई जाने वाली विभिन्न किस्मों मे कागजी नींबू , पाती नींबू कागजी कलाँ, बारहमासी नींबू, इन्दौर सीडलैस, पन्त लेमन -1 आदि प्रमुख हैं। इसके अतिरिक्त कई नयी किस्में जैसे विक्रम, प्रमालिनी, सईशर्बती तथा जयदेवी आदि विकसित की गयी है जो अधिक उपज तथा उत्तम गुणवत्ता वाली हैं।

प्रवर्धन (Propagation)

नींबू का प्रवर्धन निम्न विधियों से किया जाता है 

1 बीज द्वारा - नींबू के प्रवर्धन की यह सबसे सरल विधि है। नींबू के बीज मे बहुभ्रूणता होने के कारण एक बीज से तीन-चार पौधे निकलने की संभावना रहती है। बीज जुलाई-अगस्त के माह में भूमि से 10 सेमी. उंची उठी क्यारियों में बोना चाहिए। उगने के 6 माह के पश्चात् दूसरी क्यारियों में 10 से 15 सेमी. के अंतर पर या पोलिथीन की थैलियों में स्थानान्तरित कर देना चाहिए। लगभग 9 माह के बाद पौधे खेत में रोपने योग्य हो जाते हैं।

2 गट्टी दाब द्वारा - गूट्टी के लिए ऐसी शाखा का चुनाव करते हैं जो एक वर्ष पुरानी हो व लगभग एक सेमी. मोटी हो। जुलाई-अगस्त के महीने मे चुनी गई शाखा पर 4 सेमी. लम्बाई में छल्ले के आकार में छाल उतार दी जाती है, ध्यान रहे की छाल पूरी तरह हट जाए व काष्ठ को कोई हानि न पहुँचे। कटे हुए भाग को नम मॉस से ढक कर ऊपर से पोलीथीन का टुकड़ा लपेट दिया जाता है। लगभग 20 से 25 दिन बाद कटाव के ऊपर वाले भाग से जड़े आ जाती है। इस प्रकार तैयार गट्टी को जड सहित पैतृक वृक्ष से काट कर अलग करके नर्सरी में पोलिथीन की थैलियों में लगाकर अर्ध छायादार जगह पर रख देते हैं। गूूूूुुुुटी में जड़ों के शीघ्र के तथा अच्छे फुटान के लिये लेनोलीन के साथ आई.बी.ए. (500-1500 पी.पी.एम.) का लेप कटाव के ऊपर वाले भाग पर लगाने की अनुशंसा की जाती हैं।

पौधा रोपण (Planting)

नींबू के पौधे लगाने के लिए मई-जून के महीने मे 75×75×75 सेमी. आकार के गढ्ढे 6 × 6 मीटर की दूरी पर खोदे जाते है। उक्त्त गढ्ढों को 10-15 दिन खुला छोड़ने के बाद प्रत्येक गढ्ढे में 20 किलोग्राम गोबर की खाद, किलोग्राम सुपर फास्फेट तथा 50 से 100 ग्राम मिथायल पैराथिऑन पाउडर मिट्टी के साथ मिलाकर पुनः भर देना चाहिए । जुलाई-अगस्त माह में तैयार गढ्ढों में पौधे लगाना उपयुक्त रहता हैं पौधा रोपण के तुरन्त बाद सिंचाई अवश्य करें।

खाद एवं उर्वरक (Manure & Fertilizer)

नींबू के पौधों को निम्न सारणी के अनुसार खाद व उर्वरक देवें।

क्र.सं. पौधे की आय   गोबर की खाद             यूरिया                  स्ुपरफास्फेट           म्यूरेट ऑफ पोटाश

1.            एक वर्ष              10 किग्रा.           125 ग्राम                      250 ग्राम                     -

2.            दो वर्ष              20 किग्रा.            250 ग्राम              500 ग्राम                     -

3.           तीन वर्ष              30 किग्रा.            375 ग्राम              750 ग्राम                     200 ग्राम

4.           चार वर्ष              40 किग्रा.            500 ग्राम             600 ग्राम                    200 ग्राम

5.           पाँच वर्ष              50 किग्रा.            625 ग्राम               1250 ग्राम                     400 ग्राम

देशी खाद, सुपर फास्फेट तथा म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा व यूरिया की आधी मात्रा फूल आने के 6 सप्ताह पूर्व देवें। यूरिया की शेष आधी मात्रा फल बनने पर देवें।

सिंचाई (Irrigation)

वर्षा ऋतु में प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है। नींबू में सर्दी में 25 दिन के अन्तराल पर व गर्मी मे 15 दिन के अन्तराल में सिंचाई करनी चाहिए। फूल खिलने के समय सिंचाई नही करनी चाहिए अन्यथा फूल झड़ने की सम्भावना रहती है।

कटाई-छंटाई (Training &pruning)

साधारणतः नींबू मे किसी विशेष कटाई-छंटाई की आवश्यकता नहीं पड़ती हैं, परन्तु वर्ष में एक बार रोग ग्रसित, सूखी व एक दूसरे में फसी शाखाओं की कटाई-छंटाई करना चाहिए। इसके अतिरिक्त प्रारम्भिक अवस्था में निश्चित आकार प्राप्त करने के लिये कटाई-छंटाई करनी चाहिए।

उपज एवं भण्डारण (Yield & storage) 

 नींबू का पौधा 3-4 वर्ष की आयु के पश्चात् फल देने योग्य हो जाता हैं। फलों की तुड़ाई पूर्ण परिपक्व अवस्था मे करनी चाहिए। नींबू का रंग हल्का पीला हो जावे तब उन्हे तोड़ लेना चाहिए। पूर्ण विकसित पौधे से लगभग 1000 से 1200 फल प्रति पौधा व औसतन 50-75 किग्रा. प्रति पौधा उपज प्राप्त होती है। नींबू के फलों को 8-10 डिग्री सेल्सियस तापक्रम व 85-90 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता पर 3-6 सप्ताह तक भण्डारित किया जा सकता है।


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