"माल्टा की उत्पादन तकनीक" (Production Technology of Sweet Orange)
प्रस्तावना (Introduction)
माल्टा (sweet orange)का वानस्पतिक नाम सिट्रस साइनेसिस एवं कुल रूटेसी तथा उत्पत्ति स्थान चीन हैं। नींबू प्रजाति के फलों के विभिन्न समूहों में माल्टा समूह के फलों का छिलका पतला व गूदे से चिपका हुआ होता है। इसके फलों का रस मीठे के साथ-साथ अम्लीय (खट्टा-मीठा) होता है।
इसका फल अत्यन्त पौष्टिक व गुणकारी होने के कारण बच्चों व बीमार व्यक्तियों को इसका रस पिलाया जाता है। इसमें विटामिन सी प्रचूर मात्रा में होता है। यह विटामिन ए व बी का भी अच्छा स्त्रोत है।
जलवायु(Climate)
माल्टा उष्ण व उपोष्ण जलवायु का पौधा है। माल्टा के लिए ऐसी जलवायु अच्छी है जिसमें गर्मी मे अधिक गर्मी व सर्दी मे अधिक सर्दी पड़ती हो। शुष्क एंव अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में जहाँ सिंचाई का स्थाई साधन हो उच्च कोटि का माल्टा उगाया जा सकता है। उत्तरी भारत में जहाँ सर्दी में तापक्रम 16-20° सेल्सियस तक होता है, फलन में सुविधा रहती है। माल्टा ब्लड रेड का लाल रंग सर्दियों के ठण्डे तापमान में ही विकसित होता है। राजस्थान में श्री गंगानगर जिले में माल्टा की खेती व्यावसायिक स्तर पर होती है। यहाँ का ब्लड रेड माल्टा विश्व में प्रसिद्ध है।
भूमि (Soil)
माल्टा को वैसे तो सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकता है लेकिन जीवांश युक्त गहरी दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोतम मानी जाती है। भूमि में 2 मीटर की गहराई तक कोई कठोर कंकड़ पत्थर की परत नही होनी चाहिए। भूमि में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए तथा भूमि का पी.एच. मान 6-8 होना चाहिए। क्षारीय व लवणीय भूमि इसकी खेती के लिये अनुपयुक्त रहती है।
उन्नत किस्में (Improved varieties)
माल्टा की विभिन्न किरमों में मौसम्बी, ब्लडरेड माल्टा, हेमलिन, पाइनऐपल वेलेन्सिया, जाफा, वांशिगटन नेवल, सतगुडी आदि प्रमुख है।
प्रवर्धन (Propagation)
माल्टा का प्रवर्धन कलिकायन विधि द्वारा किया जाता है। कलिकायन के लिये मूलवृन्त के रूप में जट्टी खट्टी, जम्भिरी, रंगपुर लाइम, किलओप्टरा मेन्डेरिन, ट्रायर सिट्रेन्ज तथा करना खट्टा काम में लेते हैं। मूलवृन्त फरवरी माह मे तैयार किये जाते है। लगभग एक वर्ष आयु का मूलवृन्त कलिकायन के लिये उपयुक्त रहता है। साधारणतः शील्ड एवं पैच कलिकायन फरवरी से मार्च व सितम्बर दृ अक्टूबर में किया जाना चाहिये।
पौधा रोपण (Planting)
कलिकायन किये गये पौधे दूसरे वर्ष जब लगभग 60 सेमी. के हो जाये तो पौधारोपण हेतु उपयुक्त माने जाते हैं। माल्टा के पौधे लगाने के लिए 90 घन सेमी. आकार के गढ्ढे मई-जून में 6 × 6 मीटर की दूरी पर खोदे जाते हैं। उत्तरी भारत में पौधे लगाने का उचित समय जुलाई-अगस्त है। पौधा लगाने से पूर्व प्रत्येक गढ्ढे को 20 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम सुपर फास्फेट व मिट्टी के मिश्रण से भरना चाहिए। दीमक के नियंत्रण के लिए मिथाइल पेराथियान 50-100 ग्राम प्रति गढ्ढा देना चाहिए।
खाद एवं उर्वरक (Manure &Fertilizer)
माल्टा में खाद व उर्वरक निम्न सारणी के अनुसार देने की अनुशंसा की जाती है।
क्र.सं. पौधे की आयु गोबर की खाद यूरिया स्ुपर फास्फेट म्यूरेट ऑफ पोटाश
1. एक वर्ष 15 किग्रा. 125 ग्राम 250 ग्राम -
2. दो वर्ष 30 किग्रा. 250 ग्राम 500 ग्राम -
3. तीन वर्ष 45 किग्रा. 375 ग्राम 750 ग्राम 300 ग्राम
4. चार वर्ष 60 किग्रा. 500 ग्राम 1000 ग्राम 300 ग्राम
5. पाँच वर्ष 75 किग्रा. 625 ग्राम 1250 ग्राम 500 ग्राम
गोबर की खाद, सुपर फास्फेट, म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा दिसम्बर-जनवरी में देना चाहिये। यूरिया की 1/3 मात्रा फरवरी में फूल आने के पहले तथा शेष 1/3 मात्रा अप्रेल में फल बनने के बाद और शेष मात्रा अगस्त माह के अन्तिम सप्ताह में देवें। माल्टा में फरवरी व जुलाई माह में गौंण तत्वों का छिड़काव करना उचित रहता है। इसके लिये 550 ग्राम जिंक सल्फेट, 300 ग्राम कॉपर सल्फेट, 250 ग्राम मैंगनीज सल्फेट, 200 ग्राम मैग्नेशियम सल्फेट, 100 ग्राम बोरिक एसिड, 200 ग्राम फेरस सल्फेट व 900 ग्राम चूना लेकर 100 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
सिंचाई (Irrigation)
प्रारम्भिक अवस्था में गर्मियों में 8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें।वृक्षों पर फूल आते समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए। गर्मियों में 10-15 दिन व सर्दियों में 20-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए। फूल से फल ता बनने के तुरन्त बाद (जब मूंग के दाने के बराबर हो जाये तो) नियमित सिंचाई करें अन्यथा फलों के सिकुड़ने व झड़ने की प्रबल संभावना रहती है।
कटाई-छंटाई (Training & Pruning)
यह सदाबहार वृक्ष है इसमें पुरानी शाखाओं पर फल लगते हैं।आवश्यकता से अधिक कटाई-छंटाई फलन पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, केवल मुख्य तने से निकलने वाले वाटर सकर्स तथा रोग ग्रस्त व सूखी टहनियों को समय-समय पर काटते रहना चाहिए।
फलों का गिरना (Fruit Dropping)
सामान्यतः माल्टा में तुड़ाई के लगभग पांच सप्ताह पहले से फल गिरने लगते हैं, इसकी रोकथाम हेतु 2, 4-डी (10 पी.पी.एम.) या एन.ए.ए. 150 पी.पी.एम.) का छिड़काव करना चाहिये। इसके अतिरिक्त फलन के समय भूमि में समुचित नमी बनाये रखना चाहिये। यदि फलन के समय किसी कवक जनित रोग का प्रकोप हो तो उसके नियन्त्रण का उचित उपाय करना लाभकारी रहता है।
उपज एंव भण्डारण (Storage & Yield)
कलिकायन द्वारा तैयार किये गए पौधों मे 3-5 वर्ष की आयु मे फल आने लगते हैं लेकिन अच्छी फसल 7 वर्ष में ही मिलती है। माल्टा में फूल फरवरी-मार्च में आते है और 7-8 माह बाद अक्टूबर से फरवरी तक पके हुए फल प्राप्त होते हैं। फलों का रंग जब हल्का पीला हो जाये तब इनकी तुड़ाई करनी चाहिए। माल्टा के पूर्ण विकसित पौधो से लगभग 650-900 फल जिनका औसतन वजन 70-80 किग्रा प्रति पौधा उपज होती है। माल्टा के फलों को 5-6 डिग्री सेल्सियस तापक्रम व 85-90 प्रतिशत आपेक्षिक आर्द्रता पर 4 महीने तक भण्डारित किया जा सकता है।
लेखक :- दुर्गाशंकर मीना तकनीकी सहायक, मनीष कुमार मीना सहायक कृषि अधिकारी, डॉ प्रदीप बैरवा और जयराज सिंह गौड़ , कृषि अनुसंधान केंद्र, मंडोर (कृषि विश्वविध्यालय, जोधपुर)
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