चिया (साल्विया हिस्पिनिका) खेती की उत्पादन तकनीक (Production technology of Chia)

चिया (साल्विया हिस्पिनिका) खेती की उत्पादन तकनीक

परिचय

चिया बीज का वैज्ञानिक नाम साल्विया हिस्पिनिका है। जिसे सामान्यतः चिया के नाम से जाना जाता है। इसका कुल मिंट लामिनासी है। इस पादप का उत्पत्ति स्थल केंद्रीय एवं पश्चिमी मेक्सिको है। यह एक सयूडो सीरियल है। जिसकी खेती मुख्यतः खाद्य के लिए की जाती है। आद्रताग्राही चिया के दाने का उपयोग दक्षिणी पश्चिमी अमेरिका के विभिन्न देशों में खाद्यान्न के रूप में किया जाता है। चिया का दाना आज के समय में स्वस्थ खाद्यान्न होंने के साथ साथ पूरी तरह से पोषक तत्वों से भी भरपूर है। इस के दाने में ओमेगा 3 व ओमेगा 6 वसीय अम्ल होता है, जो ह्रदय रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद है। इसके साथ - साथ ये मधुमेह और मोटापा को भी काम करता है चिया को उष्ण एवं  उपोष्ण क्षेत्रों में सफलता पूर्वक उगाया जा सकता है। चिया के पौधे शुरुआती अवस्था में पाले के प्रति संवेदनशील होते हैं। यह किनोवा व जंगली धान के समान ही होता  है। यह एक वर्षीय साख जो 1 मीटर से 1.5 मीटर तक लंबा बढ़ता है।  इसमें पत्तियों की लंबाई 4 से 8 सेंटीमीटर तथा चौड़ाई 3 से 5 सेंटीमीटर होती है। इसके फूलों का रंग सफेद या नीला होता है। इसके फूल पौधे में गुच्छे के रूप में लगते हैं। इसके पुष्पक्रम को स्पाईक के नाम से जाना जाता है।



पोषक तत्व:- प्रति 100 ग्राम दानो मे ग्राम पोषण मूल्य

कार्बोहाइड्रेट                          42.12 ग्राम

वसा                                     30. 74 ग्राम

ओमेगा 3  वसीय अम्ल           17.83 ग्राम

ओमेगा 6  वसीय अम्ल            5.83 ग्राम

प्रोटीन                                    16.54 ग्राम

विटामिन ए                              54 माइक्रोमिलीग्राम

विटामिन सी                            1.6 मिलीग्राम

थियामिन                                 0.62 मिलीग्राम

राइबोफ्लेविन                            0.17 मिलीग्राम

नियासिन                                  8.83 मिलीग्राम

फोलेट                                      49 माइक्रोग्राम

विटामिन E                                0.5 मिलीग्राम

कैल्शियम                              631 मिलीग्राम

लोहा                                     7.72 मिलीग्राम

मैगनीशियम                            335 मिली ग्राम

मैंगनीज                                  2.723 मिलीग्राम

फास्फोरस                                860 मिलीग्राम

पोटैशियम                                407 मिलीग्राम

सोडियम                                   16 मिलीग्राम

जस्ता                                     4.58 मिलीग्राम

पानी                                      5.80 ग्राम

कोलेस्ट्रॉल                            0 मिग्रा

चिया बीज के  प्रकार

 रंग के आधार पर दो प्रकार का होता है।

1  काले रंग का बीज

2  सफेद रंग का बीज



चिया के पौधे में नीले व सफेद रंग के फूल लगते हैं।  नीले रंग वाले पादप से काले बीज प्राप्त होते हैं तथा सफेद रंग के चिया से भूरे से सफ़ेद रंग के बीज प्राप्त होते हैं

जलवायु

 चिया पादप की खेती के लिए हल्की से मध्यम क्ले मिट्टी अथवा बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी अच्छी उपज के लिए मिट्टी उचित जल उचित जल निकास वाली तथा कार्बनिक पदार्थों से भरपूर होनी चाहिए। हालांकि यह पौधा कुछ हद तक अम्लीय मिट्टी व मध्यम सूखा का प्रतिरोध कर सकता है

बीज दर और बुवाई

 इसकी एक हेक्टेयर  की बुवाई के लिए 5 से 6 किलो ग्राम बीज पर्याप्त रहता है। इसमें अच्छी उपज के लिए पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेंटीमीटर रखते हैं। बीज बुवाई के समय खेत में अच्छी नमी होनी चाहिए। क्योंकि इसका बीज हाइड्रोफिलिक प्रकृति का होता है  जिसके कारण पानी की बहुत अधिक मात्रा को स्वयं अवशोषित कर लेता है।

बुवाई का समय

 राजस्थान में इसकी बुवाई का उत्तम समय अक्टूबर माह होता है। क्योंकि इस समय राजस्थान मे अनुकूल वातावरण उपलब्ध होता है। बीज को  एक सेंटीमीटर गहरा बोया जाता है। 

खरपतवार प्रबंधन

चिया की शुरुआती वृद्धि एवं विकास में खरपतवार समस्या पैदा करते हैं।  यह पादप खरपतवार नाशी  के प्रति संवेदनशील होने के कारण इसमें खरपतवारों का प्रबंधन हाथों से निराई गुड़ाई करके किया जाता है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

सामान्य तौर पर चिया को कम खाद की आवश्यकता होती है।  इसकी अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए 15 से 20 टन कार्बनिक खाद (गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद) 100 किग्रा नाइट्रोजन प्रति हेक्टर के हिसाब से आवश्यक होती है। कार्बनिक खाद की पूरी मात्रा को बुवाई के एक महीने पहले ही खेत मे अच्छी तरह मिला देना चाहिए। नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के समय तथा बची हुई आधी मात्रा जब पौधे की लंबाई 10 सेंटीमीटर की हो जाए तब सिंचाई जल के साथ दो से तीन बार बराबर मात्रा में देनी चाहिए। क्योंकि नाइट्रोजन की पूरी मात्रा एक साथ देने पर लीचिंग के माध्यम से इसकी हानि हो जाती है। इसलिए  नाइट्रोजन खाद की मात्रा को टुकड़ों में देना चाहिए है।

 सिंचाई प्रबंधन

 सिचाई  की संख्या मिट्टी के प्रकार पर निर्भर करती है। चिया को बुलई मिट्टी में लगाने पर उसको पानी की आवश्यकता बार.बार होती है तथा क्ले  मिट्टी में कम पानी की आवश्यकता होती है क्योंकि क्ले मिट्टी मे कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बलुई मिट्टी से ज्यादा होने के कारण नमी अधिक समय तक बनी रहती है।



कीट एवं व्याधि प्रबंधन

चिया के पौधे में लगभग कोई भी कीट व व्याधि नहीं लगती है। इस पौधे की पत्तियों में निरोधक गुण होने के कारण यह कार्बनिक खेती के भी लिए बहुत उपयुक्त है।

औसत उपज

चिया एक उच्च मूल्य वाली फसल है। इसकी औसतन  उपज 5 से 6 क्विंटल के लगभग होती है। 

लेखक: दुर्गाशंकर मीना, तकनीकी सहायक***, डॉ मूलाराम, सहायक प्राध्यापक**, मनीष कुमार मीना*, सहायक कृषि अधिकारी*

कृषि अनुसन्धान केंद्र मंडोर (कृषि, विश्वविद्यालय, जोधपुर)

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

आम की उत्पादन तकनीक (Production Technology of Mango fruit)

अनार की उत्पादन तकनीक (Production Technology of Pomegranate)

"माल्टा की उत्पादन तकनीक" (Production Technology of Sweet Orange)